( तर्ज - मेरो प्रभू झूला झुले घरमाँही ० )
गुरुनाथ कहे , सुनरे साधक !
मुक्ती न मिले
निज - ग्यान बिना ॥ टेक ॥
नेम और दान हजार किन्हे ,
जपजाप किन्हे हठयोग किन्हे ।
किरपी न गुरू की होय जिन्हें ,
नहि ग्यान मिले
चाहे लाख किन्हा ॥ १ ॥
जब ग्यानी गुरु उपदेशा करे ,
तब बोधके अंकुर आन परे ।
भक्तीके फूल लगे गहरे ,
तब ग्यानके फल
अस जान दिन्हा ॥२ ।।
सब झूठ दिखे जन ये तन ये ,
मन ये , बन ये झूठे जगके
पर लौहि लगी हरिनामकी है ,
तब मुक्ति मिलेगी
बुलाये बिना || ३ ||
कहे तुकड्यादास , खबर रख ये ,
हरिके गुण मोठे है चख ये ।
चारों भी मुक्तियाँ घर रख ये ,
खुब रंग चढे भक्तीमे दुना ॥४ ॥
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